उर्मिला : अकेले ही क्यों चले गए प्रिये
क्षण भर भी ना सोचा तुमने प्रिये
क्या होगा तुम्हारी उर्मिला का पीछे
तुम शिला की मूर्ति बन गए
हाय! प्रिये तुम अकेले ही क्यों वन चले गए
भाई धर्म निभाने को जाना था यह माना हमने
तो मुझे पत्नी धर्म निभाने देते
अकेले ही क्यों वन मे चले गए मुझे साथ आने देते
माना भ्रमण कुछ नया होता
पथरीले रास्तों पे काँटों सा बिस्तर होता
चित्र ऐसा होता थोड़ा विचित्र सा होता
पर वियोग की पीड़ा से अच्छा होता
कि कुछ तुम करते कुछ मे करती
मिल -जुल के सेवा श्री राम और माँ सीता की करते
पर ऐसा तुमने होने ना दिया
अकेले ही वन जाने का निर्णय लिया
तो सुनो
रघुकुल रीत सदा चली आई प्राण जाए पर वचन ना जाए
पर प्रिये वो जो
साक्षी मान अग्नि के सात फेरो मे जो वचन दिया
वो निभाना तुम भूल गए
हाय! प्रिये तुम अकेले ही क्यों वन चले गए
गौरव कुमार खेड़ावत